अमेरिकी विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिंकन (US Secretary of State Antony Blinken) के भारत दौरे पर भी इसे लेकर विस्तार से चर्चा हुई है. एक बार फिर विदेश मंत्री कल तेहरान में नए राष्ट्रपति के शपथग्रहण में शामिल होकर इस पर चर्चा करने वाले है.
अफगानिस्तान में तालिबान और सरकार के बीच जारी सत्ता संघर्ष को लेकर भारत बहुत ही फूंक -फूंक कर कदम रख रहा है. भारत ने साफ कर दिया है कि अगर तालिबान ताकत के बदौलत काबुल की सत्ता पर काबिज होता है, तो उसे विश्व समुदाय का समर्थन नहीं मिलने वाला है. भारत का मानना है कि अफगानिस्तान के लोगों के हित में वहां के सभी घटक दलों को शांति पूर्वक बातचीत के जरिए ही स्थायी हल निकालना होगा.
अफगानिस्तान के विदेश मंत्री ने भी विदेश मंत्री जय शंकर से बात करके भारत से मदद मांगी है. अफगानिस्तान सरकार चाहती है कि इस महीने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता कर रहे भारत की अगुवाई में अफगानिस्तान के हलाल को लेकर संयुक्त राष्ट्र के दखल पर चर्चा हो. इससे अफगानिस्तान की सरकार को तालिबान का जवाब देने में मदद मिलेगी.
भारत के लिए अफगानिस्तान में कई चुनातियां भी हैं. सबसे बड़ी समस्या है कि तालिबान को लेकर भारत क्या रुख रखे. जानकारों का कहना है कि अब तक तालिबान को अछूत माना जाता रहा है लेकिन, भविष्य में तालिबान की काबुल में बढ़ती भूमिका को देखते हुए भारत को नए अप्रोच के साथ चलना होगा. तालिबान को साधने के लिए पिछले दिनों भारत के विदेश मंत्री ने ईरान, रूस और मध्य पूर्व के दौरे भी किए.
भारत के अफगानिस्तान के साथ नजदीकी संबंध
अमेरिकी विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिंकन के भारत दौरे पर भी इसे लेकर विस्तार से चर्चा हुई है. एक बार फिर विदेश मंत्री कल तेहरान में नए राष्ट्रपति के शपथग्रहण में शामिल होकर इस पर चर्चा करने वाले है. भारत ने अफगानिस्तान में ना केवल तीन बिलियन डॉलर का निवेश किया है बल्कि पिछले दो दशक से अफगानिस्तान की सरकार के साथ बेहद नजदीकी के सम्बंध रहे है. अब हालात बदल रहे हैं. पाकिस्तान नियंत्रित तालिबान के काबुल के तरफ बढ़ने से भारत नए सिरे से अफगानिस्तान के बारे में सोचने को मजबूर है.
Author: CG FIRST NEWS
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