गांव के लोगों का जहन आज भी तालिबान की बुरी यादों से भरा हुआ है.
ये महिला हैं सलीमा माजरी और वो उत्तरी अफगानिस्तान के बाल्ख प्रांत के मजार-ए-शरीफ से करीब एक घंटे की दूरी पर है. वहीं मजार-ए-शरीफ जहां से भारत ने अपने देशवासियों को निकलने का आदेश दिया है.
अफगानिस्तान में इन दिनों काफी हलचल है. अमेरिकी सेनाओं का जाना शुरू हो गया है और कुछ हिस्सों से विदेशी सेनाएं पूरी तरह से चली गई हैं. इन सबके बीच भारत की तरफ से पहली बार आफगानिस्तान-तालिबान के सभी धड़ों और नेताओं के साथ बातचीत का विकल्प रखा गया है. वहीं अफगानिस्तान से जो तस्वीरें आ रही हैं और जो दावे किए जा रहे हैं, उनके मुताबिक तालिबान ने यहां के कई हिस्सों पर कब्जा कर लिया है. इन सबके बीच अफगानिस्तान में एक महिला तालिबान को चुनौती देने की तैयारी कर चुकी है. आप भी जानकर हैरान होंगे कि जहां तालिबान ने महिलाओं को डर के साए में रहने को मजबूर कर दिया, वहां ये कौन सी महिला है जो बहादुरी के साथ इनका सामना करने को तैयार है.
मजार-ए-शरीफ से कुछ दूर माजरी
ये महिला हैं सलीमा माजरी और वो उत्तरी अफगानिस्तान के बाल्ख प्रांत के मजार-ए-शरीफ से करीब एक घंटे की दूरी पर है. वहीं मजार-ए-शरीफ जहां से भारत ने अपने देशवासियों को निकलने का आदेश दिया है और उन्हें निकालने का काम शुरू कर दिया है. तालिबान ने बहुत दूरदराज के पहाड़ी गांवों और घाटियों पर तालिबान ने कब्जा कर लिया है.
तालिबान के शासन में महिलाओं और लड़कियों की पढ़ाई लिखाई और नौकरी पर रोक लग गई थी. साल 2001 में तालिबान का शासन खत्म होने के बाद भी लोगों का रवैया कुछ कुछ ही बदला है. माजरी कहती हैं, ‘तालिबानी बिल्कुल वही हैं जो मानवाधिकारों को कुचल देते हैं. सामाजिक रूप से लोग महिला नेताओं को स्वीकार नहीं कर पाते.’
हजारा समुदाय की बहादुर महिला माजरी
माजरी हजारा समुदाय से आती हैं और समुदाय के ज्यादातर लोग शिया हैं, जिन्हें सुन्नी मुसलमानों वाला तालिबान बिल्कुल पसंद नहीं करता. तालिबान और इस्लामिक स्टेट के लड़ाके उन्हें नियमित रूप से निशाना बनाते हैं. मई में ही उन्होंने राजधानी के एक स्कूल पर हमला कर 80 लड़कियों को मार दिया था. माजरी के शासन वाले जिले का करीब आधा हिस्सा पहले ही तालिबान के कब्जे में जा चुका है. अब वे बाकि हिस्से को बचाने के लिए लगातार काम कर रही हैं. सैकड़ों स्थानीय लोग जिनमें किसान, गड़रिए और मजदूर भी शामिल हैं, उनके मिशन का हिस्सा बन चुके हैं.
जमीन बेचकर हथियार खरीद रहे लोग
माजरी बताती हैं, ‘हमारे लोगों के पास बंदूकें नहीं थीं लेकिन उन लोगों ने अपनी गाय, भेड़ें और यहां तक की जमीन बेच कर हथियार खरीदे. वो दिन रात मोर्चे पर तैनात हैं, जबकि ना तो उन्हें इसका श्रेय मिल रहा है, ना ही कोई तनख्वाह.’ पुलिस के जिला प्रमुख सैयद नजीर का मानना है कि स्थानीय लोगों के प्रतिरोध के कारण ही तालिबान इस जिले पर कब्जा नहीं कर पाया है. उन्होंने न्यूज एजेंसी एएफपी को बताया, ‘हमारी उपलब्धियां लोगों के सहयोग के दम पर हैं.’ नजीर का एक पैर लड़ाई में जख्मी हो गया है.
सेना और सुरक्षाबलों की जगह गांव के लोग
माजरी ने अब तक 600 लोगों को भर्ती किया है, जो लड़ाई के दौरान सेना और सुरक्षा बलों की जगह ले रहे हैं. इनमें 53 साल के सैयद मुनव्वर भी हैं जिन्होंने 20 साल तक खेती करने के बाद हथियार उठाया है. मुनव्वर ने कहा, ‘जब तक उन्होंने हमारे गांव पर हमला नहीं किया था, हम कारीगर और मजदूर हुआ करते थे. उन्होंने पास के गांव पर हमला किया और उनकी कालीनों और सामान पर छापा मारा. हम हथियार और गोलाबारूद खरीदने पर मजबूर हो गए.’
रणनीति बनाने में जुटीं माजरी
चारकिंत में गांव के लोगों का जहन आज भी तालिबान की बुरी यादों से भरा हुआ है. गवर्नर माजरी जानती हैं कि वो अगर वापस लौटे तो फिर किसी महिला के नेतृत्व को कभी स्वीकार नहीं करेंगे. वे कहती हैं, ‘महिलाओं की पढ़ाई लिखाई के मौकों पर रोक लग जाएगी और युवाओं की नौकरियां नहीं मिलेंगी.’ ऐसे हालात बनने से रोकने के लिए अपने ऑफिस में वे मिलिशिया के कमांडरों के साथ बैठ कर अगली जंग की रणनीति बनाने में जुटी हैं.
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Author: CG FIRST NEWS
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