खजुराहो मंदिर
2021 में जिस देश में हाईकोर्ट का जज ये कह रहा है कि अपनी पत्नी के साथ बलपूर्वक सेक्स करना अपराध नहीं है, उसी देश में सैकड़ों साल पहले लिखी गई किताब कामसूत्र में वात्स्यायन लिखते हैं, “पुरुष को कभी स्त्री को बलपूर्वक हासिल करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए. उसके साथ प्रेम और कोमलता से पेश आना चाहिए. यदि वह यौन संबंध बनाने के लिए राजी न हो तो निवेदन करना चाहिए. नतमस्तक चाहिए.”
विश्व की सभी प्राचीन सभ्यताओं की तरह हमारी सभ्यता और इतिहास में बहुत कुछ ऐसा है, जिसे संजोने, पुनर्जीवित करने और जिस पर गर्व महसूस करने की जरूरत है. वक्त के साथ बहुत कुछ बदलता है, पुराना अप्रासंगिक हो जाता है. नया जन्म लेता है. पुराना टूटता है और उसके टूटने से नए निर्माण की प्रक्रिया शुरू होती है.
लेकिन जरूरी नहीं कि नए निर्माण की प्रक्रिया में पुराना सबकुछ नष्ट ही कर दिया जाए. पुराने में बहुत कुछ ऐसा है, जिसे हमें बहुत गौरव और मुहब्बत से संजोकर रखना चाहिए. जैसेकि ये किताब कामसूत्र, जो 400 ईसा पूर्व में लिखी गई थी और जो पूरी दुनिया में अपनी तरह की अनूठी किताब है.
इतिहास के पन्ने पलटकर देखिए कि 400 ईसा पूर्व में जब भारत की धरती पर कामसूत्र जैसी किताब लिखी जा रही थी, दुनिया के और हिस्सों में क्या हो रहा था. यूरोपीय नवजागरण की शुरुआत भी नहीं हुई थी. यूरोप के देश आपस में युद्ध करने में व्यस्त थे. कोलंबस ने अमेरिका की खोज नहीं की थी. इंग्लैंड एडल्टरी के आरोप में अपनी ही रानी का सिर कलम कर रहा थाऔर सेक्स को लेकर दुनिया के अधिकांश देशों में कठोर नैतिकवादी कानून थे.
अगर यूं कहूं कि जब पूरी दुनिया अंधेरे में जी रही थी, भारत में वात्स्यायन नाम के एक दार्शनिक प्रेम और यौन रिश्तों पर संसंस्कृत में एक ऐसी किताब लिख रहे थे, जो आज भी दुनिया का प्राचीनतम सेक्सुअल टेक्स्ट है. इतिहासकारों ने काफी खोज कर ली, लेकिन ऐसी दूसरी किताब संसार की और किसी सभ्यता में लिखी नहीं मिलती. इतिहासकारों ने जापान में इस तरह के कुछ टेक्स्ट खोजे हैं, लेकिन कामसूत्र की तरह जीवन, प्रेम, यौन सुख को समझने और समझाने वाली किताब नहीं है. वो एक तरह का पोर्न टेक्स्ट है, जो प्राचीन जापान में राजा के निजी आनंद की वस्तु थी.
1883 में कामसूत्र पहली बार अंग्रेजी में प्रकाशित हुई और वो भी चोरी-छिपे, काफी मुसीबतों के बाद. लेकिन वो भी कामसूत्र का बिल्कुल असंपादित मूल वर्जन नहीं था. रिचर्ड फ्रांसिस बर्टन ने उस किताब को काफी कुछ काटा-छांटा था ताकि वह विक्ओरियन नैतिकता के पैमाने पर खरी उतर सके. बहुत बाद में जाकर कामसूत्र का शब्दश: अनुवाद प्रकाशित हुआ. 1883 में अंग्रेज जिस किताब को पचाने की दीदा नहीं रखते थे, वो हमारे यहां उससे कई सौ साल पहले लिखी जा चुकी थी. हमारे यहां खजुराहो का मंदिर था, जो 885 से 1050 ईस्वी के बीच चंदेल राजाओं के शासन काल में बनवाया गया था.
अंग्रेजी में कामसूत्र का असंपादित रूप छपने के बाद पश्चिमी देशों के लिए भी यह काफी क्रांतिकारी और आश्चर्य में डालने वाली बात थी कि जो देश 200 सालों तक अंग्रेजों का गुलाम रहा, जिस देश को पश्चिम काले संपेरों और आदिवासियों का देश कहा करता था, वहां कामसूत्र जैसी किताब न सिर्फ लिखी गई थी, बल्कि समाज में व्यापक रूप से उस किताब को स्वीकार्यता और मान्यता भी हासिल थी.
अमेरिकन राइटर और ट्रांसलेटर वेंडी डॉनिगर अपनी किताब ‘द मेअर्स ट्रैप: नेचर एंड कल्चर इन द कामसूत्र’ में लिखती हैं कि कामसूत्र फीमेल सेक्सुएटली के नजरिए से एक फेमिनिस्ट टेक्स्ट है. वो किताब से ढेर सारे उद्धरण देते हुए बताती हैं कि कैसे यह किताब स्त्री के नजरिए से सेक्स को देखने, समझने में सैकड़ों साल पहले भी अत्याधुनिक थी.
आज 2021 में जिस देश में हाईकोर्ट का जज ये कह रहा है कि अपनी पत्नी के साथ बलपूर्वक जबर्दस्ती सेक्स करना अपराध नहीं है, उसी देश में सैकड़ों साल पहले लिखी गई किताब में वात्स्यायन लिखते हैं, पुरुष को कभी स्त्री को बलपूर्वक हासिल करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए. उसके साथ प्रेम और कोमलता से पेश आना चाहिए. यदि वह यौन संबंध बनाने के लिए राजी न हो तो निवेदन करना चाहिए. हाथ जोड़ने चाहिए. आवश्यकता हो तो घुटने टेक देने चाहिए, लेकिन शारीरिक बल का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.”
यह किताब भी उसी देश में लिखी गई, जिस देश में कानून के निर्माता और रक्षक मैरिटल रेप को भी जायज ठहराने की कोशिश कर रहे हैं. कामसूत्र में ऐसी बहुत सारी बातें लिखी हैं, जिसका सीधा संबंध हमारी रोजमर्रा की जिंदगी और हमारी मनुष्यता से है. ये कोई ह्यूमन एनाटॉमी की किताब नहीं है, न ही मेडिकल साइंस की किताब है, जो मानव शरीर की संरचनात्मक जटिलताओं के बारे में समझा रही हो. यह रोजमर्रा की जिंदगी में हमारे यौन व्यवहार को समझने और व्याख्यायित करने की कोशिश है. जो लोग आज भी होमोसेक्सुएलिटी को बीमारी और आपराधिक कृत्य समझते हैं, उन्हें यह जानकर आश्चर्य होगा कि कामसूत्र में समलैंगिकता का भी जिक्र है और उस किताब में इस पूरी तरह प्राकृतिक बताया गया है. इसका सीधा अर्थ तो यह है कि प्राचीन भारत समलैंगिकता को लेकर भी ज्यादा सहिष्णु और उदार था.
खजुराहो मंदिर
एक ओर जहां वेस्ट में जन्मा और विकसित हुआ मॉर्डन मेडिकल साइंस में सैकड़ों सालों तक स्त्रियों की सेक्सुएलिटी और फीमेल एनाटॉमी हाशिए पर पड़ी रही, वहीं भारत में लिखी गई इस यह किताब यौन संबंधों में स्त्रियों के सुख और आनंद को पुरुष के आनंद के बराबर ही महत्व देती है.
इस पूरे इतिहास की रौशनी में अगर हम अहमदाबाद में कामसूत्र को जलाए जाने की घटना को देखें तो अपने दुर्भाग्य पर सिर्फ अफसोस ही कर सकते हैं. कामसूत्र कोई विदेशी चीज नहीं है. वो इस देश की धरती पर, इसी मिट्टी से उपजी है. यहीं लिखी गई. यहीं के समाज और जीवन की कहानी है. कोई फिरंग उसे अपने साथ लेकर नहीं आया था और न ही कोई लुटेरा हमलावर अपने साथ लेकर आया था. बल्कि इतिहास में इस बात के पुख्ता प्रमाण मिलते हैं कि मुगल शासक भी कामसूत्र से इतने प्रभावित थे कि मुगल काल में इस किताब का फारसी में भी अनुवाद किया गया.
कामसूत्र इस देश की सांस्कृतिक विरासत का वो हिस्सा है, जिसे हमें न सिर्फ सहेजना चाहिए, बल्कि उस पर नए सिरे से संवाद करने और मुख्यधारा विमर्श में भी लाने की कोशिश करनी चाहिए. लेकिन ये होने के बजाय हो ये रहा है कि हम अपनी ही सांस्कृतिक विरासत को मिटाने पर तुले हुए हैं. विध्वंस और विनाश में यकीन करने वाले लोग खुद अपनी संस्कृति और अपनी विरासत का भी नाश करते हैं. विध्वंस की तलवार एक सीमा के बाद अपने-पराए का भेद करना भूल जाती है. जो सिर्फ नष्ट करने में यकीन रखते हैं, वो सबकुछ को सिर्फ नष्ट की करते हैं. फिर चाहे वह अपनी खुद की विरासत ही क्यों न हो.
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Author: CG FIRST NEWS
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