
आज कल बालोद शहर का हाल कुछ एसा है की शहर मे चारो ओर आप को आवारा मवेशीयो की फ़ौज नज़र आजायेगी कुछ बस स्टैंड को अपना बसेरा बना चुकी है तो कुछ सड़को को अपना आशियाना समझ बैठी है, गलती इन बेज़ुबान जानवरो की नहीं है बल्कि इसके मालिकों की है जिन्होंने उपयोग के पश्चात इन्हे आवारा बनने के लिए इन्हे छोड़ दिया, किन्तु इससे भी बड़ी समस्या की बात ये है की इन बेजुबानो के सेहत का ख्याल रखने हेतु शासन से अधिकृत एवं संचालित पशु चिकित्सा विभाग है जिस कार्य के लिए विभाग के कर्मचारियों को मोटी तनखवा भी दी जाती है,लेकिन देखने मे कुछ और ही नजारा मिलता है बालोद शहर मे ये पुण्य कार्य बिना किसी स्वार्थ के कुछ गौ सेवा करने वाले युवाओं को सौप कर विभाग कुम्भकरणी निद्रा मे लीन है, और अपनी जिम्मेदारी से कन्नी काटता नजर आ रहा है, ज़ब से प्रदेश मे लम्पी बीमारी पशुओ मे फैलनी शुरू हुयी है तभी से लगतार गौ सेवकों के द्वारा निस्वार्थ भाव से बेजुबानो की सेवा की जा रही है लेकिन विभाग के पास ना तो इनकी जानकारी है और नाही तो कोई पुख्ता आंकड़ा उपलब्ध है, की उन्होंने कब तक कितने लंम्पी ग्रस्त मवेशीयो का इलाज किया और कितनो को स्वास्थ्य लाभ पहुँचाया? अभी भी आपको लंम्पी से पीड़ित मवेशी यहाँ वहां नज़र आ जायेंगे!जबकि बालोद नगरपालिका के पास स्वयं का कांजी हाउस उलब्ध है, बालोद शहर मे एक गौ शाला और एक निजी गौ शाला है इसके बावजूद इन बेजुबानो को सड़क पर आसरा लेना पड़ता है जिसमे की कई दुर्घटनाओ का शिकार भी हो जाती है और कुछ मवेशी तस्कारो की हाथो चढ़ जाती है!यदि समय के रहते इन बेजुबानो का इलाज कर इन्हे इनके लापरवाह मालिकों को सौप दिया जाता या या फिर कांजी हाउस या गौ शाला भेजवा दिया जाता तो ये सब समस्याओ पर शायद नियंत्रण होता, पर इस पुरे मामले मे ना केवल पशु चिकत्सा विभाग, बल्कि नगर पालिका और जिला प्रशासन भी सुस्त नज़र आ रही है, इस लापरवाही का अंजाम कही शहर की जनता को ना भुगतना पड़ जाये!




