क्या वास्तव में ऑयल बॉन्ड हैं पेट्रोल डीजल के दाम में बढ़ोतरी का कारण?

पेट्रोल और डीज़ल के दाम क्या ऑयल बॉन्ड्स की वजह से बढ़ रहे हैं?

सिर्फ ऑयल बॉन्ड की वजह से तेल की कीमतों में इजाफा हुआ, यह बात पूरी तरह से सच नहीं है. हां यह जरूर है कि पिछली सरकारों ने जितना ऑयल बॉन्ड जारी किया था मौजूदा सरकार को उसे चुकाने में काफी परिश्रम करना पड़ रहा है.

नरेंद्र मोदी सरकार (Narendra Modi Government) इन दिनों विपक्ष की एकता के साथ-साथ महंगाई की मार से भी लड़ रही है. दरअसल हिंदुस्तान की राजनीति में महंगाई एक बड़ा मुद्दा है. इस मुद्दे ने कई नेताओं की कुर्सी तक पहुंचाया है और कितनों को कुर्सी से नीचे भी उतारा भी है. आने वाले समय में जहां 2022 में विधानसभा चुनाव होने हैं, वहीं 2024 में लोकसभा के चुनाव होने हैं. मोदी सरकार के सामने विपक्ष जिन मुद्दों को सबसे ज्यादा उठाएगा उनमें से एक मुद्दा है महंगाई. खासतौर से डीजल पेट्रोल (Diesel Petrol) के रिकॉर्ड तोड़ बढ़ते दाम. हालांकि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने डीजल पेट्रोल की बढ़ती कीमतों का ठीकरा पूर्व की कांग्रेस (Congress) सरकार पर फोड़ दिया है. उनका कहना है कि यूपीए सरकार ने 2012 तक लगभग 1.44 लाख करोड़ रुपए के जो ऑयल बॉन्ड जारी किए थे, उसी की वजह से केंद्र सरकार देश की आम जनता को तेल की कीमतों में राहत नहीं दे पा रही है.

दरअसल पूर्व की यूपीए सरकार ने 1.44 लाख करोड़ रुपए का ऑयल बॉन्ड इश्यू किया था. जिसका बकाया साल 2014-15 में लगभग 1.34 लाख करोड़ रुपए था. वहीं 2014-15 में मात्र ब्याज भुगतान का बकाया 10,255 करोड़ रुपए था. अब जब से नरेंद्र मोदी सरकार बनी है तब से उसने लगभग 70,195 करोड़ रुपए का ब्याज चुका दिया है. वहीं 35 सौ करोड़ रुपए का मूलधन भी मोदी सरकार ने चुका दिया है. साल 2026 तक केंद्र सरकार को ब्याज के 37,000 करोड़ और मूलधन के 1.30 लाख करोड़ रुपए और चुकाने हैं. इसी को लेकर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पूर्व की मनमोहन सरकार पर निशाना साध रही थीं और कह रही थीं कि इसी की वजह से हम तेल की कीमतों में आम जनता को राहत नहीं दे पा रहे हैं.

ऑयल बॉन्ड होता क्या है

केंद्र सरकार के पास तेल कंपनियों को बॉन्ड जारी करने का अधिकार होता है. दरअसल हिंदुस्तान में पेट्रोल डीजल की कीमतें यहां के वोटर्स को प्रभावित करती हैं, इसलिए पेट्रोल डीजल का मुद्दा हमेशा से राजनीतिक तौर पर संवेदनशील माना जाता रहा है. यही वजह है कि केंद्र सरकार तेल कंपनियों को सब्सिडी दिया करती है, ताकि अगर अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भी तेल की कीमतें बढ़ें तो देश में सरकार अपने हिसाब से इन कीमतों को कंट्रोल कर सके. 2014 से पहले यूपीए सरकार ने इसी वजह से तेल कंपनियों को ऑयल बॉन्ड जारी किए थे. दरअसल ऑयल बॉन्ड वह सिक्योरिटी होती है जिसे सरकारें नकद सब्सिडी के बदले तेल कंपनियों को दिया करती हैं.

ज्यादातर यह बॉन्ड लंबी अवधि के लिए होते हैं और तेल कंपनियों को इन पर ब्याज भी चुकाया जाता है. कई बार सरकारें तेल कंपनियों को यह बॉन्ड इसलिए भी जारी कर देती हैं, क्योंकि उन्हें अपने राजकोष पर बोझ डालना मंजूर नहीं होता. यूपीए सरकार ने 2005 से लेकर 2010 तक ऐसे कई बॉन्ड जारी किए, जिसमें उसे कैश नहीं खर्च करना पड़ा. हालांकि यह बॉन्ड आने वाली सरकारों के लिए मुसीबत बन जाती हैं, क्योंकि इन पर इतना ज्यादा ब्याज चढ़ चुका होता है कि उसे चुकाते-चुकाते सरकारी खजाना खाली हो जाता है.

क्या सच में ऑयल बॉन्ड के चलते ही तेल की कीमतों में इजाफा हुआ है

सिर्फ ऑयल बॉन्ड की वजह से तेल की कीमतों में इजाफा हुआ, यह बात पूरी तरह से सच नहीं है. हां यह जरूर है कि पिछली सरकारों ने जितना ऑयल बॉन्ड जारी किया था मौजूदा सरकार को उसे चुकाने में काफी परिश्रम करना पड़ रहा है. लेकिन 2010 के बाद से ही ऑयल बॉन्ड जारी किया जाना बंद कर दिया गया था. देश में जब यूपीए की सरकार थी तो उसने जून 2010 में ऑयल बॉन्ड जारी करना बंद कर दिया और पेट्रोल की कीमतों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कर दिया था. यानि इसे डी रेग्यूलेट कर दिया गया था. सरकारी नियंत्रण खत्म होने का मतलब है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें अगर बढ़ती हैं तो देश में तेल की कंपनियों को भी उस हिसाब से तेल की कीमतें बाजार में रखने का अधिकार होगा. यानि तेल की कीमतों का पूरा भार जनता के ऊपर.

2014 में जब नरेंद्र मोदी की सरकार आई तो उसने अक्टूबर में डीजल को भी सरकारी नियंत्रण से मुक्त कर दिया. इसके बाद 15 जून 2017 से डायनेमिक फ्यूल प्राइस सिस्टम को लागू किया गया. यानि को जो तेल के दाम हफ्ते-15 दिन पर बढ़ते थे अब रोज़ बढ़ाए जा सकते हैं. इसकी वजह से अब हर रोज तेल की कीमतों में उतार चढ़ाव हो सकता है. यानि आप जब सुबह 6 बजे पेट्रोल पंप पर जाएंगे तो वहां आपको नई कीमतों के साथ डीजल पेट्रोल मिलेगा. इसकी वजह से भी तेल की कीमतों में खूब वृद्धि हुई.

सरकार पर फिलहाल ऑयल बॉन्ड का कितना बोझ है

बीबीसी हिंदी में छपी एक खबर के अनुसार क्लीयरिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड के मुताबिक 2014 से अब तक केंद्र सरकार ने 35 सौ करोड़ रुपए मूलधन चुकाए हैं. इसके साथ ही इसी साल 10,000 करोड़ रुपए के बॉन्ड की मैच्योरिटी होने वाली है, जिसका भुगतान भी केंद्र सरकार को करना होगा. इसके साथ ही 16 अक्टूबर 2006 को 15 वर्षों के लिए 5000 करोड़ रुपए के ऑयल बॉन्ड भारत सरकार ने जारी किए थे, इसकी मैच्योरिटी 16 अक्टूबर 2021 को हो रही है. वही 28 नवंबर 2006 को 5000 करोड़ रुपए के ऑयल बॉन्ड जारी किए गए थे, जिसकी मैच्योरिटी 28 नवंबर को हो रही है यानि इन सभी ऑयल बॉन्डों की रकम केंद्र सरकार को तय तारीखों पर भुगतान करना होगा. कुल मिलाकर देखा जाए तो 2026 तक केंद्र सरकार ब्याज के 37,000 करोड़ और मूलधन के 1.30 लाख करोड़ रुपए और चुकाने हैं.

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Author: CG FIRST NEWS

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