लोगों में वापस जाने को लेकर काफी डर है।
सलवा जुडूम के दौरान जान बचाकर अविभाजित आंध्रप्रदेश में शरण लेने वाले आदिवासियों को नक्सली मार रहे हैं। पिछले तीन महीने में 3 हत्याएं हो चुकी हैं। इन हत्याओं से 35,000 छत्तीसगढ़िया दहशत में हैं, जो आंध्रप्रदेश और तेलंगाना के 230 गांवों में रह रहे हैं। इन हत्याओं के जरिए नक्सली, उन लोगों में दहशत पैदा करना चाहते हैं जो छत्तीसगढ़ वापस आना चाहते हैं। इस पर बस्तर, तेलंगाना और आंध्रप्रदेश के गांवों से भास्कर रिपोर्टर देवेंद्र गोस्वामी और प्रशांत गुप्ता की ग्राउंड रिपोर्ट, जहां बीते 17 सालों से इनके जीवन में सूर्यास्त के बाद कभी उजियारा नहीं हुआ।
नक्सलियों की दहशत ऐसी कि जल, जंगल और जमीन से हमेशा जुड़े रहने वाले बस्तर के 35 हजार से अधिक आदिवासी 17 साल बाद भी अपने घर नहीं लौट पाए हैं। पिछले तीन महीने में तीन लोगों की हत्या के बाद फिर से अपनी जमीन पर आने के नाम से रुह कांप जाती है। नक्सली इन हत्याओं के माध्यम से घर वापसी करने वालों को डराने की कोशिश कर रहे हैं। 17 अप्रैल को दुधी गंगा की हत्या के बाद घर वापसी की हसरत रखने वालों का मन बदल गया है। इससे पहले मरकम इथा और अबका पांडु की भी नक्सली हत्या कर चुके हैं। ये तीनों ही छत्तीसगढ़ वापसी की पहल कर रहे थे।
आंध्रप्रदेश और तेलंगाना के 230 गांवों 35 हजार छत्तीसगढ़िया लोग रहते हैं। यहां बिजली पानी तक नहीं।
बिजली पानी तक नहीं
लोगों में जो दहशत है, इसे जानने के लिए भास्कर की टीम आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के उन क्षेत्रों में पहुंची, जहां छत्तीसगढ़ के आदिवासी जंगलों में जीवन गुजार रहे हैं। तेलंगाना के भद्रादी जिला अंतर्गत ग्राम राजीवनगरम और ऐर्राबोर के दूरस्थ क्षेत्रों में न बिजली है और न पानी। राजीवनगरम में मरकम इथा की पत्नी से मुलाकात हुई। वह सिर्फ गौड़ी बोल पाती हैं, तो एक स्थानीय नागरिक ने ट्रांसलेट कर उसकी बात बताई। वे कहती हैं कि हम लौटे तो नक्सली सबको मार डालेंगे।
कोया जनजाति मानकर प्रमाण-पत्र जारी कर दे
यहां रहने वाले लोगों का कहना है कि हम तेलंगाना-आंध्रा में सुरक्षित हैं। बस सरकार हमें कोया जनजाति मानकर प्रमाण-पत्र जारी कर दे। जो बच्चे दसवीं-बरहवीं तक पढ़ चुके हैं, उन्हें नौकरी नहीं मिलती। एर्राबोर में 26 परिवार रहते हैं। यहां मिले माड़वी हिरेश ने बताया कि उनके पास पांच एकड़ जमीन थी, जिस पर खेती करते थे। तेलंगाना के वन विभाग वालों ने इस साल तीन एकड़ जमीन वापस ले ली है। गांव में बिजली नहीं है।
शाम 7 बजे के बाद उनके जीवन में अंधेरा रहता है। लड़कियां पांचवीं के बाद पढ़ नहीं पाती। आंध्र सरकार की तरफ से प्रति छह किलो चावल हर महीेने मिलता है। उधर आंध्रप्रदेश के गिलेटवाड़ा में, जहां दुधी गंगा रहता था, उसका परिवार दहशत में है। उसकी पत्नी सुबह से लेकर शाम तक जंगल में ही रहती है। गांव का कोई भी व्यक्ति वापसी पर बात नहीं करना चाहता।
मरकम इथा की पत्नी।
नक्सलियों ने इन्हें मार दिया
1-नक्सलियों ने सुकमा के कोलईगुड़ा में 17 अप्रैल को दुधी गंगा की हत्या की थी। वह आंध्रप्रदेश के गिलेटवाड़ा में रहता था। दुधी छत्तीसगढ़ वापसी के लिए प्रयासरत था। 4 अप्रैल को प्रतिनिधिमंडल के साथ रायपुर में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और फिर दिल्ली में केंद्रीय मंत्री रेणुका सिंह से मुलाकात की थी।
2- 27 मार्च को बीजापुर के कोंडापल्ली में नक्सलियों ने मरकम इथा को मौत के घाट उतार दिया था। वह अपने परिवार से मिलने छत्तीसगढ़ आया था। वह तेलंगाना के भद्रादी जिले के राजीवनगरम में रहता था। आयता की पत्नी ने बताया कि नक्सलियों ने परिवार के सदस्यों को मारने की धमकी दी है।
3-तेलंगाना के चेरला में रहने वाले पांडु की हत्या भी नक्सलियों ने 27 मार्च को की थी। पांडु अपने मित्र मड़काम इथा के साथ छत्तीसगढ़ आया था। बीजापुर के कोंडापल्ली पंचायत क्षेत्र में हत्या हुई। पांडु छत्तीसगढ़ वापसी की मुहिम का हिस्सा था।
बच्चों के लिए गांव में कोई व्यवस्था भी नहीं है।
तेलंगाना सरकार जमीन छीन रही
तेलंगाना में रहे नक्सल पीड़ित आदिवासी भागकर अविभाजित आंध्रप्रदेश गए थे। जिसे जहां जगह मिली वे बस गए। जमीन पर कब्जा किया, कच्चा मकान बनाए और आस-पास की जमीन पर खेती शुरू कर दी। एक-एक परिवार के पास 2 से 10 एकड़ तक जमीन तक है। मगर, आंध्रप्रदेश और तेलंगाना सरकार इनसे कुछ जमीन वापस ले रही है। इससे इन्हें जीवन यापन में मुश्किल हो रही है।
2 वजहों से समझें क्यों डरे हैं आदिवासी
नक्सली मार डालेंगे– तीन महीने में नक्सलियों ने तीन आदिवासियों की हत्या कर दी। इन घटनाओं से अब आंध्रा-तेलंगाना में रहे आदिवासी खौफजदा हैं। इन्हें डर है कि अगर ये वापसी करते हैं तो नक्सली इनकी भी हत्या कर देंगे। अगर, नहीं करें तो संगठन में शामिल होने का दबाव डालेंगे।
गांव में होगा विरोध, खूनी संघर्ष का डर– सुकमा जिला प्रशासन ने आंध्रा, तेलगांना में बसे छत्तीसगढ़ के नागरिकों की लिस्टिंग शुरू की है। मगर, पीड़ितों को डर है कि अगर सरकार उन्हें छत्तीसगढ़ में लाकर बसाती है तो ग्रामीण विरोध करेंगे। इससे खूनी संघर्ष का अंदेशा रहेगा। इन्हें सुरक्षा का डर सता रहा है। ये कहते हैं कि सरकार सुरक्षा घेरे में रखेगी तो जीने की आजादी कहां होगी, कम से कम अभी जहां हैं सुरक्षित तो हैं।
नक्सली छीन लेते हैं आधा पैसा
पीड़ित आदिवासियों का कहना है कि ये आंध्रा-तेलंगाना में जो काम करते हैं, या खेती करते हैं उससे जो आय होती है वह पूरी उनकी होती है। मगर, छत्तीसगढ़ में उन्हें पुन: बसाया गया तो नक्सली आधा पैसा छीन लेंगे। भास्कर पड़ताल में सामने आया कि अकेले राजीवनगरम में 38 परिवार हैं, इनमें से 09 के पास ट्रैक्टर हैं। हर दूसरे घर में बाइक है। इन्हें कपास की खेती से हर साल 2-3 लाख रुपए तक की आय हो रही है।
इस तरह के घरों में यहां लोग रहते हैं।
जाति प्रमाण-पत्र को लेकर उलझा है मामला
तेलंगाना में रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता एवं सितारा एनजीओ के संचालक डॉ. हनीफ कहते हैं कि तेलंगाना और आंध्र प्रदेश की सरकारें, छत्तीसगढ़ के आदिवासियों को राज्य से नहीं निकाल रहीं। हां, यहां पर उन्हें अगर अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलवानी है तो छत्तीसगढ़ सरकार उन्हें कोया जनजाति मानते हुए जाति प्रमाण-पत्र दे। बस यहीं पेंच फंसा हुआ है। तेलंगाना में कोया को मान्यता है, जबकि छत्तीसगढ़ से इन्हें मुरिया जनजाति का प्रमाण-पत्र दिया जाता है। इसे वहां मान्यता नहीं है।
सूची तैयार कर रहे हैं
बस्तर संभागायुक्त और नोडल अधिकारी श्यामलाल धावड़े का कहना है कि आंध्रा और तेलंगाना में जाकर रहे छत्तीसगढ़ के आदिवासियों की सूची तैयार की जा रही है। इनकी मांगों व बातों को रिपोर्ट में रखा जाएगा। पलायन कर जाने वालों में 90 प्रतिशत सुकमा के हैं। जो भी यहां आना चाहता है, उनका स्वागत है। उन्हें पूरी सुरक्षा के साथ बसाया जाएगा।
Author: CG FIRST NEWS
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