योग और नैतिक शिक्षा के साथ मातृभाषा को भी स्कूलों मे शामिल किया जाए!
गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ी भाषा छत्तीसगढ़ के लगभग पौने तीन करोड़ लोगों की भाषा है, स्थानीय लोगों द्वारा अपनी मातृभाषा छत्तीसगढ़ी मे जनसंपर्क तथा विचारों का आदान- प्रदान किया जाता है! देश- विदेश के बड़े- बड़े भाषाविद् कहते है कि बच्चो की प्राथमिक शिक्षा अपनी मातृभाषा मे होनी चाहिये जिससे बच्चो का सर्वांगीण विकास हो सके! एन सी ई आर टी मे भी दर्ज है कि बच्चो को अपनी मातृभाषा मे शिक्षा दी जानी चाहिए, यहाँ तक की हमारी नई शिक्षा नीति 2020 मे भी मातृभाषा मे शिक्षा अनिवार्य रूप से शामिल करने की बात कही गई है! फिर आज एक दसक बीत जाने के बाद भी छत्तीसगढ़ी मातृभाषा मे पढाई- लिखाई की व्यवस्था क्यु नही की जा रही? ज्ञात हो कि पिछले कांग्रेस की सरकार ने स्कूलों मे मातृभाषा मे शिक्षा देने की घोषणा की थी, साथ ही छत्तीसगढ़ी मे डिग्री प्राप्त हजारों बेरोजगारो को रोजगार देने की भी बात कही गई थी! साथ ही एससीईआरटी मे पाठ्यक्रम निर्माण भी कक्षा पहिली से पांचवी तक पूर्ण किया जा चुका है! सरकार बदलने के बाद नये सरकार का रवैय्या इस ओर तनिक मात्र भी नही है जबकि वर्तमान शिक्षामंत्री बृजमोहन अग्रवाल जी ने मुलाकात के दौरान छत्तीसगढ़ी मातृभाषा को शामिल करने की बात भी कही थी! एम ए छत्तीसगढ़ी छात्र संगठन की उपाध्यक्ष पुजा परघनिहा ने बताया कि संगठन के द्वारा छत्तीसगढ़ी मातृभाषा के विकास के लिए सन् 2013 से आजतक अनेकों कार्यक्रम, रैली तथा जनजागरुकता अभियान चलाया जा रहा है, संगठन की उपाध्यक्ष ने आगे बताया कि कुछ महीने पुर्व राष्ट्रपति जी के छत्तीसगढ़ प्रवास के दौरान भी मुलाकात कर इस ओर ध्यान आकर्षण करवाया गया था! पर आज दसक बीत जाने के बाद भी सरकार की इस ओर निरंकुशता ही दिखाई देती है! आज वर्तमान मे केंद्र ओर राज्य दोनो ही जगह पर भाजपा की सरकार है! चूँकि राज्य सरकार द्वारा योग और नैतिक शिक्षा को स्कूल मे लागु करने की घोषणा की गई है जिसमे संगठन की उपाध्यक्ष पुजा परघनिहा द्वारा निवेदन किया गया है कि योग और नैतिक शिक्षा के साथ छत्तीसगढ़ के समस्त स्कूलों मे मातृभाषा को भी अनिवार्य किया जाए जिससे बच्चो का सर्वांगीण विकास हो सके और 2013 से एम ए छत्तीसगढ़ी मे डिग्री प्राप्त कर चुके बेरोजगारो की व्यवस्थापन की व्यवस्था हो सके!