भगवान अनंत
भगवान विष्णु को समर्पित अनंत चतुर्दशी का त्योहार 19 सितंबर को है. हर साल भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को ये पर्व मनाया जाता है. इसी दिन गणेश भगवान का विसर्जन होता है और गणेशोत्सव का समापन हो जाता है. अनंत चतुर्दशी के दिन श्री विष्णु भगवान के अनंत रूप की पूजा होती है. इस दिन व्रत रखने से बड़े से बड़े संकट दूर हो जाते हैं.
कहा जाता है कि जब पांडव सब कुछ जुए में हारने के बाद इधर उधर भटक रहे थे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अनंत चतुर्दशी पर भगवान के अनंत स्वरूप के पूजन और व्रत का सुझाव दिया था. इसके बाद ही उनके संकट दूर होना शुरू हुए थे और आखिर में पांडवों ने विजय प्राप्त करके राजपाठ आदि सब कुछ प्राप्त कर लिया था. जानिए प्रभु विष्णु अनंत कैसे कहलाए.
ये है मान्यता
एक बार देवर्षि नारद ने भगवान विष्णु से विराट स्वरूप के दर्शन देने की इच्छा प्रकट की. भगवान ने उस इच्छा को पूरा करते हुए उन्हें दर्शन दिए. इसके बाद नारद मुनि को श्री सच्चिदानंद सत्यनारायण के अनंत स्वरूप का ज्ञान हो गया. ये दिन भाद्रपद मास की चतुर्दशी का दिन था. तब से इस दिन को अनंत चतुर्दशी के रूप में पूजा जाने लगा. ये दिन श्रीहरि के उसी अविनाशी और अनंत स्वरूप के प्रति आभार प्रकट करने का दिन है.
इसलिए होती है अनंत की पूजा
कहा जाता है कि भगवान विष्णु से सृष्टि के आरंभ में चौदह लोकों की रचना की थी. इनमें तल, अतल, वितल, सुतल, तलातल, रसातल, पाताल, भू, भुवः, स्वः, जन, तप, सत्य, मह शामिल हैं. इन लोकों की रचना करने के बाद इनके संरक्षण और पालन करने के लिए भगवान नारायण 14 रूपों में प्रकट हो गए थे और अनंत प्रतीत होने लगे थे. अनंत को इन 14 लोकों का प्रतीक माना जाता है और इस दिन विष्णु भगवान के अनंत, ऋषिकेश, पद्मनाभ, माधव, वैकुण्ठ, श्रीधर, त्रिविक्रम, मधुसूदन, वामन, केशव, नारायण, दामोदर और गोविन्द स्वरूप की पूजा होती है.
संकटों से रक्षा करने वाला है अनंत सूत्र
पूजा के बाद अनंत सूत्र को पुरुष दाहिनी भुजा पर और महिलाएं बायीं भुजा पर बांधती हैं. कहा जाता है कि अनंत सूत्र धारण करने से अनंत भगवान की कृपा व्यक्ति पर बनी रहती है और उसके जीवन के सभी संकट दूर हो जाते हैं. साथ ही तमाम पाप कट जाते हैं.
ये है कथा
एक दिन कौण्डिन्य मुनि ने अपनी पत्नी के बाएं हाथ में बंधे अनंत सूत्र को जादू-मंतर वाला वशीकरण करने का डोरा समझकर तोड़ दिया और उसे आग में डालकर जला दिया. इससे भगवान विष्णु नाराज हो गए और उनकी सारी संपत्ति नष्ट हो गई. इसके बाद कौण्डिन्य ऋषि ने अपने अपराध का प्रायश्चित करने का निर्णय लिया और वे अनंत भगवान से क्षमा मांगने के लिए वन में चले गए. वे रास्ते में हर किसी से अनंत भगवान का पता पूछते रहते, लेकिन किसी से उन्हें कोई जानकारी प्राप्त नहीं हो सकी. इसके बाद कौण्डिन्य मुनि ने निराश होकर प्राण त्यागने का विचार कर लिया. तभी एक वृद्ध ब्राह्मण ने आकर उन्हें आत्महत्या करने से रोक दिया और एक गुफा में ले जाकर चतुर्भुज अनन्त देव का दर्शन कराया. इसके बाद ब्राह्मण ने कहा कि तुम्हारी इस दीन हीन हालत की वजह ये है, कि तुमने अनंत सूत्र का तिरस्कार किया है. अब प्रायश्चित के लिए तुम चौदह वर्ष तक निरंतर अनंत व्रत का पालन करो. कौण्डिन्य मुनि ने चौदह वर्ष तक अनंत व्रत का नियमपूर्वक पालन किया. इसके बाद उनके जीवन में खुशियां लौट आईं और खोई हुई संपत्ति वापस मिल गई.
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Author: CG FIRST NEWS
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