छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के कोरर क्षेत्र में ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) समाज ने नगरीय निकाय और पंचायत चुनावों में आरक्षण कटौती के खिलाफ महाबंद और चक्काजाम का आह्वान किया। इस प्रदर्शन ने स्थानीय जनजीवन को पूरी तरह प्रभावित किया। ओबीसी समाज ने आरक्षण में कटौती को अपने संवैधानिक अधिकारों का हनन बताते हुए राज्य सरकार के खिलाफ नाराजगी जाहिर की।
महाबंद के कारण जनजीवन ठप
महाबंद के चलते कोरर के बाजार, दुकानें और अन्य व्यावसायिक प्रतिष्ठान पूरी तरह बंद रहे। आम जनता को इस बंद का खामियाजा भुगतना पड़ा, क्योंकि सार्वजनिक सेवाओं पर भी इसका असर दिखा। चक्काजाम के कारण सड़कें बाधित हो गईं और वाहनों की लंबी कतारें लग गईं।
प्रदर्शन के पीछे की मांगें
ओबीसी समाज ने सरकार से आरक्षण कटौती को तत्काल प्रभाव से वापस लेने की मांग की। उनका कहना है कि आरक्षण में कटौती समाज के लिए अन्यायपूर्ण और उनके अधिकारों का हनन है। प्रदर्शनकारियों ने राज्य सरकार और विशेष रूप से भाजपा नेता विष्णुदेव साय पर निशाना साधते हुए इसे ओबीसी समाज के खिलाफ एक साजिश करार दिया।
राजनीतिक समर्थन और बढ़ता दबाव
इस आंदोलन को कांग्रेस, शिवसेना और अन्य राजनीतिक दलों का समर्थन मिला। विभिन्न राजनीतिक संगठनों ने प्रदर्शन स्थल पर पहुंचकर ओबीसी समाज के साथ एकजुटता जाहिर की। राजनीतिक समर्थन के कारण आंदोलन को और बल मिला, और सरकार पर दबाव बढ़ गया।
चेतावनी और भविष्य की रणनीति
ओबीसी समाज ने चेतावनी दी कि अगर उनकी मांगों को जल्द पूरा नहीं किया गया, तो यह आंदोलन राज्यव्यापी विरोध प्रदर्शन का रूप ले सकता है। प्रदर्शनकारियों ने कहा कि सरकार के रवैये के खिलाफ बड़े स्तर पर उग्र आंदोलन किया जाएगा।
जनता की परेशानियां और सरकार की प्रतिक्रिया
इस महाबंद और चक्काजाम के कारण स्थानीय लोग कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। जरूरी सेवाओं पर असर पड़ने से लोग परेशान हैं। हालांकि, सरकार की ओर से इस मुद्दे पर कोई ठोस बयान नहीं आया है।
आंदोलन के राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव
यह प्रदर्शन न केवल ओबीसी समाज के अधिकारों की लड़ाई को दर्शाता है, बल्कि राज्य में आरक्षण व्यवस्था पर जारी बहस को भी उजागर करता है। आंदोलन ने राज्य सरकार के सामने नई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार इस मुद्दे का समाधान कैसे करती है और प्रदर्शनकारियों की मांगों पर क्या कदम उठाए जाते हैं।
निष्कर्ष
कोरर का यह आंदोलन केवल स्थानीय स्तर पर ही सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह राज्यव्यापी मुद्दा बन सकता है। ओबीसी समाज की मांगें और उनका आक्रोश सरकार के लिए गंभीर चुनौती प्रस्तुत कर रहा है। अब यह सरकार पर निर्भर करता है कि वह इस स्थिति को कैसे संभालती है और समाज के असंतोष को कम करने के लिए क्या कदम उठाती है।
Author: CG FIRST NEWS
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