तीनों सेना के सर्वोच्च अधिकारी (CDS) जनरल बिपिन रावत का करियर शुरू से सुनहरा रहा है. उनके नाम पर इतने सम्मान हैं कि गिनने में कुछ वक्त लगेगा. करियर की शुरुआत की बात करें तो 16 दिसंबर 1978 को 11वीं गोरखा राइफल की 5वीं बटालियन में कमिशन हुए जनरल रावत उसी यूनिट में तैनात हुए जिसमें उनके पिता तैनात थे. जनरल रावत को काउंटर इंसरजेंसी और हाई-ऑल्टीट्यूड वारफेयर में महारथ हासिल है और दशकों का तजुर्बा है.
भारत-चीन युद्ध के वक्त जनरल रावत ने मोर्चा संभाला था और बड़ी भूमिका निभाई. 1987 में सुमदोरोंग चू घाटी में एक झड़प के दौरान जनरल रावत की बटालियन को चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के खिलाफ तैनात किया गया था. 1962 के युद्ध के बाद विवादित मैकमोहन रेखा पर यह गतिरोध पहला सैन्य टकराव था जिसमें रावत मोर्चा संभाल रहे थे. उन्होंने मेजर के रूप में उरी, जम्मू और कश्मीर में एक कंपनी की कमान संभाली. एक कर्नल के रूप में उन्होंने किबिथू में वास्तविक नियंत्रण रेखा के साथ पूर्वी सेक्टर में अपनी बटालियन 5वीं बटालियन 11 गोरखा राइफल्स की कमान संभाली.
उनकी हाल की उपलब्धियों को देखें तो 17 दिसंबर 2016 को भारत सरकार ने दो और वरिष्ठ लेफ्टिनेंट जनरल प्रवीण बख्शी और पी.एम. हारिज़ को पीछे छोड़ते हुए उन्हें 27वें थल सेनाध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया. उन्होंने जनरल दलबीर सिंह सुहाग की रिटायरमेंट के बाद 31 दिसंबर 2016 को 27वें सीओएएस के रूप में सेनाध्यक्ष का पदभार ग्रहण किया.
जनरल रावत फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ और जनरल दलबीर सिंह सुहाग के बाद गोरखा ब्रिगेड से थल सेनाध्यक्ष बनने वाले तीसरे अधिकारी हैं. 2019 में अमेरिका की अपनी यात्रा पर, जनरल रावत को यूनाइटेड स्टेट्स आर्मी कमांड और जनरल स्टाफ कॉलेज इंटरनेशनल हॉल ऑफ़ फ़ेम में शामिल किया गया था. वे नेपाली सेना के मानद जनरल भी हैं. भारतीय और नेपाली सेनाओं के बीच एक-दूसरे के प्रमुखों को उनके करीबी और विशेष सैन्य संबंधों को दर्शाने के लिए जनरल की मानद रैंक देने की परंपरा रही है.
MONUSCO (कांगो का एक मिशन) की कमान संभालते हुए जनरल रावत ने अपनी सेवा की सर्वोच्च भूमिका निभाई. कांगो में तैनाती के दो सप्ताह के भीतर ब्रिगेड को पूर्व में एक बड़े हमले का सामना करना पड़ा, जिसने न केवल उत्तरी किवु (गोमा की क्षेत्रीय राजधानी) बल्कि पूरे देश में स्थिरता के लिए खतरा पैदा कर दिया. जनरल रावत की कमान में ही उत्तर किवु ब्रिगेड को मजबूत किया गया. उनका व्यक्तिगत नेतृत्व, साहस और अनुभव ब्रिगेड को मिली सफलता के लिए महत्वपूर्ण थे.
जून 2015 में मणिपुर में यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ वेस्टर्न साउथ ईस्ट एशिया (UNLFW) से जुड़े उग्रवादियों के घातक हमले में अठारह भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे. भारतीय सेना ने सीमा पार से हमलों का जवाब दिया जिसमें पैराशूट रेजिमेंट की 21वीं बटालियन की इकाइयों ने म्यांमार में एनएससीएन-के बेस पर हमला किया. दीमापुर स्थित III कोर के संचालन नियंत्रण में 21 पारा था, जिसकी कमान तब रावत के पास थी. उनकी कमान में की गई कार्रवाई सैन्य कार्रवाई में सबसे अहम स्थान रखता है.
Author: CG FIRST NEWS
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