कांकेर :- पुरे छत्तीसगढ़ वासियों की तरह टाहकापार मे भी संतानों की दीघायू एवं परिवार के सुख शांति और समृद्धि के लिए शनिवार को हल षष्ठी, ( कमरछठ) का पर्व धूम धाम से मनाये। इस अवसर पर महिलाएं इक्कठे होकर सगरी की पूजा अर्चना करके कथा का श्रवण किये। हल षष्ठी व्रत भादो मास की कृष्ण पक्ष की छठ को रखा जाता है। इस व्रत को करने के लिए पूरे दिन हल से जोती गई सब्जी, चांवल् या अन्यकोई अनाज नही खाया जाता। इस व्रत को भगवान् बलराम जी के जन्मोत्सव के रूप मे रखा जाता है। इस व्रत कथा का वर्णन पद्म पुराण मे भी दी गई है।
हलषष्ठी व्रत का महत्व :- इस व्रत को विधि-विधान से करने से संतान के जीवन में चल रहे सभी दुख-दर्द होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से संतान को लंबी आयु की प्राप्ति होती है।
हलषष्ठी व्रत में क्या नहीं करना चाहिए :- हरछठ व्रत में हल चले भूमि पर नहीं चलना चाहिए। तामसिक भोजन जैसे प्याज व लहसुन आदि का सेवन नहीं करना चाहिए। इस व्रत में गाय के दूध, दही या घी का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
हलषष्ठी पूजन विधि :- इस दिन महिलाएं महुआ पेड़ की डाली का दातून स्नान कर व्रत रखती हैं। इस दिन व्रती महिलाएं कोई अनाज नहीं खाती हैं। सामने एक चौकी या पाटे पर गौरी-गणेश, कलश रखकर हल षष्ठी देवी की मूर्ति या प्रतिमा की पूजा करते हैं। इस पूजन की सामग्री में बिना हल जुते हुए जमीन से उगा हुआ धान का चावल, महुआ के पत्ते, धान की लाई, भैंस का दूध-दही व घी आदि रखते हैं। बच्चों के खिलौने जैसे- भौरा, बाटी आदि भी रखा जाता है।
Author: CG FIRST NEWS
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