

दो दिन से आदिवासी समाज के लोग भुमाफियाओ के खिलाफ बैठे भुख हड़ताल पर
बालोद (गुरूर) :- जल जंगल जमीन कि लड़ाई के लिए विगत दो दिनों से आदिवासी समाज के लोग अपने ही जमीन पर हक पाने के लिए इस भरे गर्मी मे अपने जान माल कि परवाह किये बगैर राजाराव पठार मे डटे हुए है, मामला आदिवासी जमीन को सामान्य के नाम हस्तांतरित करने से उपजे विवाद से है जो बालोद जिले के दूरस्थ वनांचल ग्राम कर्रेझर के 52 एकड़ जमीन का है सूत्रों के अनुसार, धमतरी और बालोद जिले के कुछ भू-माफियाओं ने 16 आदिवासी किसानों की जमीन को पहले एक आदिवासी महिला के नाम से खरीदा और अब उसे सामान्य वर्ग के नाम से ट्रांसफर करवाने के लिए कलेक्ट्रेट में आवेदन दिया है.जिसकी जानकारी होते ही अब आदिवासी समाज विरोध प्रदर्शन कर राजाराव पठार में भूख हड़ताल पर बैठ गए हैं, इस जमीन खरीद के पीछे कुछ रसूखदार और धन्ना सेठो कि और उन्के भु माफिया गैंग कि काली करतूत है, जो भोले भाले आदिवासीयों कि जमीन चंद रूपयों कि लालच मे और उनकी कम शिक्षा का फायदा उठा कर शासकीय दस्तावेजो मे हस्ताक्षर कर वा लिया जाता है, जिसकी जानकारी जमीन मालिकों को लगते लगते उनकी कौड़ी के दाम बेचीं गयी जमीन करोड़ो तक पहुँच जाती है और जमीन का मालिक दूसरा तीसरा व्यक्ति होता जाता है इस बीच चंद दलाल रूपी अमर बेल पनप जाते है और जमीन का असली मालिक मुफलिसी कि जिंदगी बसर करता है और ये धन्ना सेठ और भुमाफिया दलाल अगले शिकार कि तलाश मे सक्रिय हो जाते है!
प्रशासन कि पहल नहीं आयी काम
इस पुरे मामले मे आदिवासी समाज के द्वारा कलेक्ट्रेट में इसकी जानकारी 1 जुलाई 2024 को शिकायत के तौर पर दी गयी थी किन्तु जिला प्रशासन के सुस्त रवैया के चलते आदिवासी समाज को आज राजाराव पठार मे अनिश्चित कालीन भुख़ हड़ताल मे बैठना पड़ा इस भुख हड़ताल के पूर्व 26 मार्च को धरने के रूप मे आदिवासी समाज के लोग एकत्रित हुए किन्तु वहां बात नहीं बन पाई और समाज कि मांग पूरी होने तक भुख हड़ताल मे बैठ गये जिसे समाज द्वारा जल जंगल जमीन भुमकाल का नारा दिया है!
कौड़ियों के भाव खरीदी जमीन, करोड़ो तक पहुँच गयी वजह
सूत्रों कि माने तो ये 52 एकड़ कि भूमि महानदी और गंगरेल बांध के संगम क्षेत्र मे आती है जो वनांचल और पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण अति लोक लुभावन और मनोरम दृश्य वाला है,और पर्यटन के दृष्टिकोण से काफ़ी महत्वपूर्ण है जो आने वाले समय मे काफ़ी मोटी आमदनी का जरिया होगा इसलिए इन धन्ना सेठो और भु माफियाओ कि नजर पर ये एक व्यवसायिक लाभ पहुंचाने वाली भूमि है जहाँ रिसोर्ट का और आवासीय परिसर का निर्माण कर खुब मोटा मुनाफा कमाया जा सकता है जिसकी जानकारी लगते ही आदिवासी समाज के लोगो मे चिंता बढ़ गयी रिसोर्ट कल्चर के चलते कही आदिवासी मान्यताओं और परम्पराओ कि बलि ना चढ़ जाये! फिलहाल आदिवासी समाज के ओर से ये कहा जा रहा है कि ये आंदोलन कि शुरुआत है यदि जिला प्रशासन पीड़ितों को जमीन वापस नहीं दिलवाता तो ये आंदोलन आने वाले समय मे प्रदेशव्यापी होगा!
