नई दिल्ली/वाशिंगटन: भारत और अमेरिका ने द्विपक्षीय परमाणु सहयोग को एक नया आयाम देते हुए भारत में परमाणु रिएक्टरों के निर्माण के लिए समझौते को अंतिम रूप दिया है। यह निर्णय 2007 में दोनों देशों के बीच हुए असैन्य परमाणु समझौते को आगे बढ़ाने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। अमेरिकी प्रशासन ने इस परियोजना को 18 साल बाद आधिकारिक मंजूरी दे दी है, जिससे भारत में ऊर्जा उत्पादन को नई मजबूती मिलेगी।
परियोजना को लेकर बड़ी घोषणा
अमेरिकी प्रशासन की मंजूरी के बाद अब भारत में अमेरिकी कंपनियां परमाणु रिएक्टर निर्माण में सहयोग करेंगी। इस परियोजना के तहत अत्याधुनिक तकनीक से लैस रिएक्टर स्थापित किए जाएंगे, जो भारत की बढ़ती ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद करेंगे।
अमेरिकी प्रशासन का बयान: अमेरिकी ऊर्जा विभाग ने कहा, “भारत के साथ यह परमाणु सहयोग दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत करेगा। यह न केवल भारत की स्वच्छ ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करेगा, बल्कि वैश्विक परमाणु सुरक्षा और स्थिरता को भी बढ़ावा देगा।”
समझौते का महत्व
2007 में भारत-अमेरिका के बीच ऐतिहासिक असैन्य परमाणु समझौता हुआ था, लेकिन विभिन्न प्रशासनिक और कानूनी अड़चनों के कारण इस पर अमल नहीं हो सका था। अब, 18 साल बाद इस समझौते पर काम शुरू होने से भारत को एक बड़ी उपलब्धि मिली है।
क्या होगा फायदा?
भारत में स्वच्छ और स्थायी ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा।
अमेरिका की अत्याधुनिक परमाणु तकनीक भारत को प्राप्त होगी।
ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की दिशा में भारत को मजबूती मिलेगी।
दोनों देशों के बीच रणनीतिक सहयोग और अधिक मजबूत होगा।
भारत सरकार ने इस पहल को देश की ऊर्जा सुरक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि बताया है। आने वाले वर्षों में इस परियोजना के तेजी से कार्यान्वित होने की उम्मीद है, जिससे भारत के ऊर्जा परिदृश्य में क्रांतिकारी बदलाव आएगा।
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