संवाददाता – अशोक जैन
कांकेर :- जिले के कोरर, राष्ट्रीय अंधत्व व अल्प दृष्टि नियंत्रण कार्यक्रम के अंतर्गत प्रत्येक वर्ष की भाँति इस वर्ष भी मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ अविनाश खरे के निर्देशन व जिला अंधत्व निवारण उप समिति काँकेर के नोडल अधिकारी डॉ सरिता कुमेटी व उप नोडल अधिकारी एम केशरी मार्गदर्शन में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, कोरर के नेत्र सहायक अधिकारी अशोक यादव व समस्त मरीजों और स्टॉफ की उपस्थिति में ग्लॉकोमा स्क्रीनींग सप्ताह का शुभारंभ किया गया। इस अवसर पर व सभी ने अपने नेत्र परीक्षण करवाए जिसमें प्रथम दिवस ग्यारह लोगों को निःशुल्क प्रेषबायोपिक चश्मा भी प्रदान किया गया।
कालामितिया के विषय में जनजागरूकता हेतु सभी उपस्थित जनों व मरीजों को नेत्र सहायक अधिकारी अशोक यादव ने गलाकोमा अर्थात कालामोतिया क्या है व इससे बचाव के विषय में बहुत विस्तार से जानकारी दी-
काला मोतियाबिंद (ग्लूकोमा) –
आँखों में नेत्र दाब के बढ़ने की वजह से ऑप्टिक नर्व डैमेज हो जाती है तो हम उसे काला मोतियाबिंद कहते हैं।
काला मोतियाबिंद से पीड़ित व्यक्ति को देखने में परेशानी होती है।
यदि समय रहते काला मोतियाबिंद का इलाज नहीं किया जाए तो इससे व्यक्ति हमेशा के लिए अंधा हो सकता है। इसलिए प्रारंभिक अवस्था में लक्षण दिखाई देने पर इस गंभीर बीमारी का इलाज कराना बहुत जरूरी होता है।
काला मोतियाबिंद के कारण:
खुद को न्योरिश करने के लिए हमारी आंखें एक्वियस ह्यूमर नामक एक तरल पदार्थ का उत्पादन करती हैं। यह तरल पदार्थ पुतली से होते हुए आंख के सामने बहता है।
तरल पदार्थ आईरिस और कॉर्निया के बीच स्थित ड्रेनेज कैनाल के माध्यम से बाहर निकल जाता है। जब किसी कारण से ड्रेनेज कैनाल ब्लॉक होने लगता है तब ये तरल पदार्थ बाहर न निकलकर आँखों में इकठ्ठा होने लगता है, जिससे ऑप्टिक नर्व में दबाव पड़ने के कारण वे डैमेज हो जाती हैं और व्यक्ति को काला मोतियाबिंद हो जाता है।
काला मोतिया के जोखिम कारक:
कुछ जोखिम कारक हैं जो काला मोतियाबिंद होने का कारण बन सकते हैं-
40 वर्ष से अधिक आयु पर जल्दी जल्दी चश्मा नम्बर का बदलना, कुछ चिकित्सीय स्थितियाँ, जैसे मधुमेह, माइग्रेन, उच्च रक्तचाप और सिकल सेल एनीमिया,कॉर्निया के सेंटर का पतला होना, अत्यधिक निकटता या दूरदर्शिता,
आँखों में चोंट लग जाना, आँखों की कोई सर्जरी,
लंबे समय तक कॉर्टिकोस्टेरॉइड दवाइयों का उपयोग, खासकर आई ड्रॉप, आँखों में उच्च आंतरिक दबाव,
यदि फैमिली में किसी को काला मोतियाबिंद था, आदि।
काला मोतियाबिंद के लक्षण:
काला मोतियाबिंद के प्रकार और स्टेज के अनुसार इसके लक्षण के अलग-अलग हो सकते हैं।
ओपन-एंगल ग्लूकोमा
प्रारंभिक अवस्था में कोई लक्षण नहीं, साइड में देखने पर पैची ब्लाइंड स्पॉट का दिखना, काला मोतियाबिंद के इस प्रकार के हायर स्टेज में सामने देखने (Central Vision) में भी कठिनाई होती है।
एक्यूट एंगल-क्लोजर काला मोतियाबिंद
तेज सिरदर्द, आँखों में तेज दर्द, मतली या उल्टी, धुंधली दृष्टि, रोशनी के चारों ओर रंगीन छल्ले दिखाई देना, आँखों का लाल होना।
नॉर्मल-टेंशन काला मोतियाबिंद
प्रारंभिक अवस्था में कोई लक्षण नहीं, धीरे-धीरे धुंधली दृष्टि, हायर स्टेज में साइड विज़न ख़त्म हो जाती है।
बच्चों में ग्लूकोमा
आँखों का सुस्त रहना, सामान्य से अधिक पलक झपकना,
बिना रोए आंसू निकलना, अगर बच्चों में काला मोतियाबिंद के लक्षण दिखाई देते हैं तो किसी अच्छे नेत्र रोग विशेषज्ञ से तुरंत जांच कराएं।
पिगमेंट्री ग्लूकोमा
रोशनी के चारों ओर रंगीन छल्ले दिखाई देना, एक्सरसाइज करने के साथ आंखों धुंधलापन छा जाना, धीरे-धीरे साइड विज़न ख़त्म हो जाता है।
काला मोतियाबिंद का परीक्षण:
हो सकता है कि आपको काला मोतियाबिंद हो लेकिन आप इससे अनजान हो, इसलिए नेत्र रोग विशेषज्ञ अथवा नेत्र सहायक अधिकारी से अस्पताल में अपनी आँखों की नियमित जांच कराते रहनी चाहिए।
ऊपर बताए गए लक्षण दिखाई देने पर अथवा काला मोतियाबिंद का परीक्षण करने के लिए डॉक्टर निम्नलिखित परीक्षण कर सकता है:
प्यूपिल डाइलेशन टेस्ट: इसमें डॉक्टर आँखों की पुतलियाँ को फैलाकर ऑप्टिक नर्व की जांच करता है।
गोनियोस्कॉपी: इस टेस्ट में डॉक्टर आँखों के ड्रेनेज एंगल का मूल्यांकन करने के लिए एक विशेष लेंस और स्लिट लैंप का उपयोग करता है।
ऑप्टिकल कोहेरेंस टोमोग्राफी: यह एक इमेजिंग टेस्ट है जिसमें डॉक्टर लो-पॉवर लेजर बीम की मदद से आँखों के पीछे मौजूद ऑप्टिक नर्व और रेटिना की इमेज निकालता है और उसका मूल्यांकन करता है।
टोनोमेट्री टेस्ट : इस टेस्ट की मदद से डॉक्टर आँखों के भीतरी दबाव का मूल्यांकन करता है, जिससे उसे काला मोतियाबिंद का पता लगाने में मदद मिलती है।
काला मोतियाबिंद का उपचार
काला मोतियाबिंद का उपचार नहीं कराने से रोगी हमेशा के लिए अंधा हो सकता है। हालांकि काला मोतियाबिंद के कारण हुए दृष्टि हानि को वापिस तो नहीं ठीक कर सकते हैं, लेकिन इलाज के माध्यम से आगे होने वाले दृष्टि हानि को बचाया जा सकता है।
काला मोतियाबिंद के स्टेज के अनुसार उपचार हेतु, डॉक्टर निम्नलिखित उपचार प्रक्रियाओं में से किसी भी प्रक्रिया का चयन कर सकते हैं।
दवाइयाँ
काला मोतियाबिंद का उपचार करने के लिए डॉक्टर कुछ टेबलेट और आई ड्रॉप्स दे सकता है। ये आई ड्रॉप्स आँखों में तरल पदार्थ के उत्पादन और आंतरिक दबाव को कम करके ग्लूकोमा से बचाने में मदद करते हैं। क्योंकि, ग्लूकोमा एक स्थायी बीमारी है, हो सकता है आपको आई ड्रॉप्स का इस्तेमाल आजीवन करना पड़े।
आवश्यक होने पर सर्जरी आमतौर पर काला मोतियाबिंद का इलाज के लिए दो तरह की सर्जरी (ग्लूकोमा फिल्टरिंग सर्जरी /ट्रैबेक्यूलेक्टोमी और मिनिमली इनवेसिव ग्लूकोमा सर्जरी होती हैं।
काला मोतियाबिंद के प्रकार और गंभीरता के आधार पर नेत्र चिकित्सक इनमें से किसी एक प्रक्रिया को चुन सकता है।
मिनिमली इनवेसिव ग्लूकोमा सर्जरी एक मिनिमल इनवेसिव सर्जरी है जिसमें एक बहुत ही छोटे कट के मदद से आँखों के आंतरिक दबाव को कम किया जाता है। तरल पदार्थ के लिए एक अलग जगह बनने के बजाय इस सर्जरी के बाद तरल पदार्थ को निकालने के नेचुरल पाथ फ्लो में सुधार होता है।
यह एक गंभीर बीमारी है। यदि इसका इलाज समय पर नहीं किया जाए तो व्यक्ति को जीवन भर अंधा रहना पड़ सकता है, इसलिए काला मोतियाबिंद के लक्षण नजर आने पर आपको एक नेत्र रोग विशेषज्ञ से सम्पर्क करना चाहिए। क्यों कि दृष्टि है तो सृष्टि है।
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, कोरर में ग्लॉकोमा सप्ताह के शुभारंभ के अवसर पर डॉ एस एस ध्रुव जिला आयुर्वेद अधिकारी काँकेर, डॉ डी एस ठाकुर आयुष अधिकारी कोटतरा आयुष कायाकल्प प्रभारी, डॉ हेमंत चंद्राकर आयुष चिकित्सा अधिकारी कोरर, डॉ अमितेश रावटे कोरर, गजेंद्र सिन्हा ग्रामीण चिकित्सा सहायक, पूनम ठाकुर, राखी पाईक, शहनाज खान,धामिनी ठाकुर, प्रतिमा कलामें स्टॉफ नर्स, रूपेश नेताम क्रांति ठाकुर, केश्वरी प्रधान फार्मासिस्ट, घनश्याम मारगिया, मंजूलता निषाद, देवेंद्र यादव, तिलक धनकर, अजय कुंजाम, कल्पना दत्ता, सुखनंदन तारम, रचना पोटाई, सुनीता साहू, आदि उपस्थित रहे।
Author: CG FIRST NEWS
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