नवरात्र : शारदीय नवरात्र का पहला दिन विशेष महत्व रखता है, क्योंकि इस दिन मां दुर्गा के पहले स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। देवी शैलपुत्री का जन्म प्रजापति दक्ष की पुत्री मां सती के रूप में हुआ था। एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, राजा दक्ष ने एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया, लेकिन अपने दामाद भगवान शिव को निमंत्रण नहीं भेजा। मां सती अपने पति की अनुपस्थिति से दुखी होकर अपने पिता के यज्ञ में गईं। वहां उन्हें अपने पति का अपमान देखने को मिला, जिसके कारण उन्होंने यज्ञ अग्नि में आत्मदाह कर लिया। इस त्याग के बाद भगवान शिव ने यज्ञ का विध्वंस किया और मां सती के शरीर को लेकर चले गए। उनके शरीर के विभिन्न अंगों पर शक्तिपीठ स्थापित हुए।
मां सती ने अगले जन्म में पर्वतराज हिमालय की पुत्री मां पार्वती के रूप में जन्म लिया, और कठोर तप के बाद भगवान शिव को पुनः पति रूप में प्राप्त किया। उनके पर्वतराज की पुत्री होने के कारण उन्हें शैलपुत्री नाम मिला।
पूजा और मंत्र
नवरात्र के पहले दिन भक्तजन घटस्थापना करते हैं और अखंड ज्योति जलाते हैं। इस दिन मां शैलपुत्री की उपासना से शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है। भक्तजन निम्नलिखित मंत्रों का जाप कर सकते हैं:
1. या देवी सर्वभूतेषु शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
2. वन्दे वांच्छित लाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्। वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।
भोग का महत्व
इस दिन मां शैलपुत्री को सफेद रंग की वस्तुओं का भोग अर्पित करना शुभ माना जाता है। भक्तजन उन्हें सफेद बर्फी, दूध से बनी मिठाइयां, हलवा, रबड़ी या मावे के लड्डू का भोग अर्पित कर सकते हैं। ऐसा करने से जीवन के सभी दुख समाप्त होते हैं और घर में बरकत बनी रहती है।
नवरात्र का यह प्रथम दिन मां शैलपुत्री की आराधना करने का है, जो श्रद्धालुओं को दिव्यता और ऊर्जा प्रदान करता है। इस दिन की पूजा से भक्तों को देवी की कृपा प्राप्त होती है और उनका जीवन मंगलमय बनता है।
Author: CG FIRST NEWS
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