क्या चिदंबरम का चमत्कार गोवा में चलेगा और कांग्रेस पार्टी यहां चुनाव जीत सकेगी ?

चिदंबरम गोवा में कांग्रेस का झंडा लहरा सकेंगे? ( रेखांकन-उदय शंकर)

गोवा में कांग्रेस पार्टी बिखरती गयी और कांग्रेस आलाकमान बेखबर हो कर सोती रही. ऐसा नहीं है कि कांग्रेस नेता गोवा जाते ही नहीं हैं. हर साल दिसम्बर के आखिरी सप्ताह में सोनिया गांधी स्वास्थ्य लाभ करने गोवा जाती हैं और उनकी देखभाल करने साथ में राहुल गांधी भी होते हैं.

कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता और गोवा प्रदेश नवनियुक्त केन्द्रीय पर्यवेक्षक पी. चिदंबरम (Chidambaram) के गोवा दौरे की घोषणा हो गयी है. चिदंबरम का दो दिन का दौरा बुधवार को शुरू होगा. चिदंबरम को पार्टी के अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने जिम्मेदारी सौपी है कि वह राज्य में कांग्रेस पार्टी की स्थिति का जायजा लें और आगामी विधानसभा में पार्टी की जीत की योजना सुनिश्चित करें. चिदंबरम एक पुराने और विश्वासपात्र नेता हैं जिनकी पार्टी और गांधी परिवार के प्रति वफ़ादारी पर शक नहीं किया जा सकता. शायद पार्टी को गोवा के लिए एक ऐसे ही नेता की जरूरत थी क्योकि पिछले साढ़े चार साल में यह स्पष्ट हो गया है कि गोवा में कांग्रेस पार्टी के नेता और खासकर विधायकों पर विश्वास नहीं किया जा सकता. उनकी निष्ठा सिर्फ पद और पैसे के प्रति है.
चिदंबरम को राजीव गाँधी के ज़माने में एक उभरते हुए नेता के रूप में देखा जाता था. उनसे उम्मीद की जाती थी कि वह उनके गृहप्रदेश तमिलनाडु में कांग्रेस पार्टी को अगर कोई पुनर्जीवित कर सकता है तो वह चिदंबरम ही हैं. पर उनका दिल्ली के प्रति प्यार इतना ज्यादा है कि खुद वह तमिलनाडु में पार्टी के लिए बोझ बन गए और जब कभी भी लोकसभा चुनाव जीतने में सफल रहे तो वह सहयोगी दलों की वजह से. वह दिल्ली में ही ज्यादातर समय बिताते हैं, चाहे सरकारी बंगला हो या उनका जंगपुरा का निजी आवास या फिर दिल्ली का तिहाड़ जेल.

75 की उम्र में बेहद टफ टास्क

बहरहाल जब जिम्मेदारी दी गयी है तो उसे निभाना भी पड़ेगा ही. जिस दिन से पार्टी ने उन्हें गोवा में केंद्रीय पर्यवेक्षक नियुक्त करने की घोषणा की, चिदंबरम की घबराहट जरूर बढ़ गयी होगी, क्योकि उनके लिए 75 वर्ष की उम्र में भी शायद माउंट एवेरस्ट की चोटी पर जा कर झंडा फहराना आसान होगा बनिस्बत गोवा में कांग्रेस पार्टी की जीत का पताका लहराना. 2012 के गोवा विधानसभा चुनाव में बीजेपी की आसान जीत हुयी थी पर बीजेपी के कुछ गलत फैसलों के कारण स्थिति 2017 के चुनाव में काफी बदल गयी. जनता ने खंडित जनादेश दिया. 40 सदस्यों वाली विधानसभा में बीजेपी 21 सीटों से 13 पर पहुंच गयी और कांग्रेस पार्टी 17 विधायकों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी. एनसीपी के एकलौते विधायक का भी पार्टी को समर्थन था, यानी सरकार बनाने के लिए मात्र तीन विधायकों के समर्थन की जरूरत थी. गोवा फॉरवर्ड पार्टी और महाराष्ट्रवादी गोमंतक पार्टी जिनके तीन-तीन विधायक चुन कर आये थे, कांग्रेस को समर्थन देने को तैयार थे. तीन निर्दलीय विधायक भी तैयार बैठे थे. पर सरकार बीजेपी की बन गयी. कारण रहा कि कांग्रेस विधायक दल स्थानीय स्तर पर अपना नेता चुनने में असफल रहा. यह जिम्मेदारी कांग्रेस पार्टी के तात्कालिक अध्यक्ष राहुल गांधी को सर्वसम्मति से दी गयी. पांच राज्यों में लगातार चुनाव प्रचार से थककर चूर राहुल गांधी उस समय कहीं छुट्टी मना रहे थे. चार दिन के बाद जब तक राहुल गांधी दिल्ली वापस लौट कर कोई निर्णय लेते सत्ता रूपी चिड़िया हाथ से निकल चुकी थी. बीजेपी ने सरकार बनाने की जिम्मेदारी मनोहर पर्रिकर को सौंपी. पर्रिकर की सभी दलों में पैठ थी. बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष अमित शाह भी गोवा पधारे और रातों रात पासा पलट गया. गोवा फॉरवर्ड पार्टी, महाराष्ट्रवादी गोमंतक पार्टी और निर्दलीयों ने बीजेपी को समर्थन दे दिया. बौखलाई हुयी कांग्रेस पार्टी ने आरोप लगाया की हरेक विधायक को तीन-तीन करोड़ रुपयों में ख़रीदा गया. राज्यपाल के खिलाफ मुहिम, हाई कोर्ट में केस दायर करना, कांग्रेस पार्टी ने वह सब कुछ किया पर अब तक देर हो चुकी थी. विधानसभा सत्र के पहले दिन ही कांग्रेस पार्टी के एक विधायक और पूर्व मंत्री विश्वजीत राणे ने विधायक के रूप के शपथ लेने से ठीक पहले कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया और बीजेपी सरकार में मंत्री बन गए. विश्वजीत राणे के पिता प्रतापसिंह राणे प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में विधायक थे.
यह तो मात्र एक झलकी थी.कांग्रेस आलाकमान ने गोवा की सुध नहीं ली और 2019 आते आते पहले बीजेपी ने गोवा फॉरवर्ड पार्टी और महाराष्ट्रवादी गोमंतक पार्टी के दो-दो विधायक तोड़ लिए और फिर हुआ बड़ा धमाका जब कांग्रेस के बाकी बचे 15 में से 10 विधायक एक साथ बीजेपी में शामिल हो गए. इसमें तात्कालिक नेता प्रतिपक्ष चन्द्रकांतकावलेकर भी शामिल थे, जिन्हें उपमुख्यमंत्री का पद दिया गया. और यह भी तब हुआ जबकि मनोहर पर्रिकर का निधन हो चुका था और उनकी जगह प्रमोद सावंत मुख्यमंत्री बने थे. गोवा में कांग्रेस पार्टी बिखरती गयी और कांग्रेस आलाकमान बेखबर हो कर सोती रही. ऐसा भी नहीं है कि कांग्रेस के केंद्रीय नेता कभी गोवा नहीं गए. हर साल दिसम्बर के आखिरी सप्ताह में सोनिया गांधी स्वास्थ्य लाभ करने गोवा जाती हैं और उनकी देखभाल करने साथ में राहुल गांधी भी होते हैं. गांधी परिवार हर वर्ष गोवा सिर्फ पर्यटक के रूप में जाते रहे और पार्टी की कोई सुध नहीं ली.

6 महीनें में क्या चमत्कार कर सकेंगे

अब चिदंबरम को जिम्मेदारी दी गयी है कि वह गोवा में पार्टी का कायाकल्प कर दें, जो वह कभी भी अपने गृहराज्य तमिलनाडु में नहीं कर पाए. गोवा में अगला विधानसभा होने में अब छः महीने से भी कम का समय बचा है और चिदंबरम से उम्मीद की जा रही है कि वह गोवा में कोई चमत्कार कर दें. सबसे पहले चिदंबरम को यह फैसला लेना होगा कि क्या प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गिरीश चोदंकर अपने पद पर इतना सब कुछ होने के बावजूद भी रहने लायक हैं? अगर नहीं तो कौन होगा कांग्रेस का नया अध्यक्ष. फिर उसके बाद चिदंबरम की चुनौती होगी कि पार्टी की तरफ से मुख्यमंत्री पद का चेहरा कौन होगा? कांग्रेस के पांच बचे विधायकों में चार पूर्व मुख्यमंत्री हैं – दिगंबर कामत, प्रतापसिंह राणे, रवीनाईक और लुइझिनोफलेरो. क्या इनमें से ही कोई कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री का दावेदार होगा या फिर किसी नए चेहरे की चिदंबरम तलाश करेंगे. शायद कांग्रेस पार्टी इस बार चुनाव के बाद विधायक दल नेता के चुनाव की गलती नहीं करेगी और इसका फैसला चुनाव से पूर्व ही कर लिया जाएगा, कम से कम उम्मीद तो यही है. और इन सबसे भी अहम चुनौती है कि कैसे कांग्रेस पार्टी गोवा के मतदाताओं को भरोसा देगी कि पार्टी के प्रत्याशी चुनाव जीतने के बाद पूर्व की तरह ही सत्ता या पैसों के लालच में किसी अन्य दल में शामिल नहीं हो जाएंगे.
चिदंबरम का मार्ग गोवा में कांटों से भरा है, क्योंकि कांग्रेस पार्टी की गोवा में हालत वही है जैसे कि सब कुछ लुटा के होश में आये तो क्या किया?

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Author: CG FIRST NEWS

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