दिल्ली :- मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को ईडी के बाद सीबीआई मामले में भी सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई है। वे आज शाम तक तिहाड़ जेल से बाहर आ सकते हैं। हालांकि, कोर्ट ने सीबीआई की गिरफ्तारी को वैध ठहराया है और बेल की शर्तें तय की हैं। कोर्ट ने जमानत के लिए वहीं शर्तें लगाई हैं, जो ED केस में बेल देते वक्त लगाईं थीं। केजरीवाल को बाहर आकर उन शर्तों का पालन करना होगा।
माना जा रहा है कि रिहाई की शर्तों की वजह से केजरीवाल की मुश्किलें कम नहीं हुई हैं। उन्हें सरकार चलाने में मशक्कत झेलनी पड़ सकती है। फिलहाल, केजरीवाल की रिहाई से पार्टी नेता से लेकर कार्यकर्ता तक खुश हैं। सीएम आवास से लेकर पार्टी दफ्तर तक में जश्न मनाया जा रहा है। सात पॉइंट में जानिए केजरीवाल की रिहाई के मायने।
इन शर्तों के साथ केजरीवाल को मिली जमानत
- जेल से बाहर आने के बाद केजरीवाल किसी भी फाइल पर दस्तखत नहीं कर पाएंगे, जब तक ऐसा करना जरूरी ना हो।
- केजरीवाल के दफ्तर जाने पर भी पाबंदी रहेगी। वे ना तो मुख्यमंत्री कार्यालय और ना सचिवालय जा सकेंगे।
- इस मामले में केजरीवाल कोई बयान या टिप्पणी भी नहीं कर सकते हैं।
- किसी भी गवाह से किसी तरह की बातचीत नहीं कर सकते हैं।
- इस केस से जुड़ी किसी भी आधिकारिक फाइल को नहीं मंगा सकते हैं, ना देख सकते हैं।
- जरूरत पड़ने पर ट्रायल कोर्ट में पेश होंगे और जांच में सहयोग करेंगे।
- 10 लाख का दो बॉन्ड भरना होगा।
केजरीवाल के सामने कई चुनौतियां
फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा, CBI ने नियमों का कोई उल्लंघन नहीं किया है। उन्हें जांच की जरूरत थी, इसलिए इस केस में अरेस्ट किया गया। इससे पहले केजरीवाल के वकील ने गिरफ्तारी पर सवाल उठाए थे और इसे अवैध ठहराया था। कोर्ट के इस निर्णय को केजरीवाल के लिए झटका माना जा रहा है। केजरीवाल अभी भी ट्रायल का हिस्सा रहेंगे और कानूनी दायरे में बने रहेंगे।
चुनाव प्रचार पर नहीं होगी रोक
फिलहाल, केजरीवाल के अब जेल से बाहर आने का रास्ता साफ हो गया है. लेकिन, जमानत की शर्तें केजरीवाल के कामकाज में आड़े आएंगी और सरकार चलाने में मुश्किलें खड़ी करेंगी। दरअसल, जमानत की शर्तों के मुताबिक, केजरीवाल ना कोई नीतिगत फैसले ले सकते हैं और ना किसी सरकारी फाइल पर दस्तखत कर सकते हैं। सिर्फ चुनावी प्रचार तक ही सीमित रह सकते हैं। सरकार से जुड़े कोई फैसले की अनुमति नहीं है। हालांकि, यह तय है कि केजरीवाल ही मुख्यमंत्री बने रहेंगे। वो अपना पद नहीं छोड़ेंगे। क्योंकि, लंबा वक्त जेल में बिताने के बाद भी उन्होंने पद नहीं छोड़ा है तो अब दायित्व छोड़ने की उम्मीद भी कम ही है।
केजरीवाल को दिल्ली वालों की नब्ज पहचानने में माहिर माना जाता है। यहां विधानसभा चुनाव से ठीक 4 महीने पहले केजरीवाल का बाहर आना दिल्ली की सियासत में सबसे ज्यादा हलचल लेकर आने वाला है। विपक्षी भी मानते आए हैं कि केजरीवाल के बाहर आने से आम आदमी पार्टी की ताकत कम से कम दिल्ली में तो दोगुनी हो ही जाती है।
पार्टी में बिखराव को रोकेंगे केजरीवाल
केजरीवाल के बाहर आने से संगठन के लिए जरूर अच्छी खबर है। पार्टी में 6 महीने से चेहरे का संकट देखने को मिल रहा था। सुनीता केजरीवाल से लेकर मनीष सिसोदिया और संजय सिंह तक संगठन से जुड़े फैसले ले रहे थे। इससे पहले आतिशी, सौरभ भारद्वाज और सांसद संदीप पाठक को आगे किया गया था. पिछले कुछ दिनों से पार्टी को बड़े झटके लगे हैं। पूर्व मंत्री राजकुमार आनंद और राजेंद्र पाल गौतम जैसे बड़े नेताओं ने पार्टी का साथ छोड़ दिया है। राजकुमार, पटेलनगर से विधायक रहे हैं और वे बीजेपी में चले गए हैं। गौतम ने कांग्रेस जॉइन कर ली है। वे सीमापुरी से विधायक रहे हैं और केजरीवाल सरकार में मंत्री रहे। इसके अलावा, कई पार्षदों ने भी AAP का साथ छोड़ दिया है।
Author: CG FIRST NEWS
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