दुर्गा पूजा आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी से मनाया जाता है दुर्गा पूजा की शुरुआत नवरात्रि की एक दिन पहले महालया से शुरू होती है महालया शेष रात्रि 4:00 बजे सभी भक्तगण केले के पेड़ से अनुमति लेकर पेड़ की पूजा कर केले की थोर को काटते हैं इस थोर के केले से ही मां दुर्गा को षष्ठी से लेकर विजयादशमी तक भोग चढ़ाया जाता है, महालया के एक सप्ताह बाद षष्ठी प्रारंभ होता है षष्ठी के दिन पंडालो में पहले बेल सहित बेल की डाल को स्थापित कर देवी बोधन किया जाता है इसके पश्चात महिलाएं मां गंगा से अनुमति लेकर तालाब से कलश में जल भरकर लाती है लाये हुए जल से मां दुर्गा,लक्ष्मी, सरस्वती, कार्तिक, गणेश की कलश स्थापना की जाती है, सप्तमी के दिन से ही पंडालो में रौनक लगी रहती है मां दुर्गा को एक सौ आठ लड्डुओं का भोग लगाया जाता है इस दिन केले के पेड़ को नई दुल्हन की तरह हल्दी लगाकर स्नान कर करने वस्त्र पहनकर उसका श्रृंगार कर भगवान गणेश की पत्नी के रूप में इनका कलश स्थापित किया जाता है, महा अष्टमी का विशेष महत्व है इस दिन मां दुर्गा को खीर पूरी बारो भाजा का भोग लगाया जाता है एवं रखिए गणना का बलिदान किया जाता है इसके बाद संधी पूजा की जाती है संधी पूजा में सारी महिलाएं व्रत रखकर 108 दिए को जलाकर मन्नत मांगती है फिर इस दिए की आरती मां दुर्गा को की जाती है, नवमी के दिन मां को खिचड़ी मिठाई का भोग दिया जाता है 108 कमल के फूल को चढ़ाया जाता है, हवन किया जाता है शाम को संध्या आरती होती है भक्तों में महाभोग वितरण किया जाता है, विजयदशमी की दिन तीन महिलाएं धान को कूटकर उसका चावल निकलती है उस चावल, कोचई भाजी( काला कोचूर साग ), चिवड़ा का भोग लगाया जाता है, पीले फूल या अपराजिता के साथ विशेष यात्रा कर माँ दुर्गा को विसर्जन दिया जाता है, इसके बाद सारी महिलाएं पहले मां को सिंदूर लगाती है फिर एक दूसरे में सिंदूर खेलना शुरू करती है ऐसी मान्यता है कि पांच दिन मां दुर्गा अपने मायके आती है बड़े धूमधाम एवं हर्षोल्लास से दुर्गा उत्सव मनाया जाता है।
बंगाली दुर्गा पूजा अंतर्जातीय स्वीकृति दिया UNESCO ने। उसी सम्मान स्वरूप एक मुद्रा प्रकाश किया गया।
Author: CG FIRST NEWS
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